Share: Table of Contents Toggle3 Best Mantra on Dhanteras and About Yama Deepaधनतेरस से आरम्भ करें:धनतेरस के दिन दीपदान:Related posts:Guru PurnimaVaikunta Chaturthi15 List of Tithi Benefits for shraddhakarmaNaraka Chaturdashi ko Narakeyatanaon se RakshaSunday Saptami3 Best Powerful Mantra Chant on DussehraBest 10 Deepavali Puja items to Become WealthyMasik Shivaratri Vrat VidhiDon't Eat Rice on Vaikunta EkadashiGupt Navratri se 7 Manokaamana Puree Karana 3 Best Mantra on Dhanteras and About Yama Deepa धनतेरस/Dhanteras के दिन क्या करें और यम-दीपदान सरल विधि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन को धनतेरस कहते हैं । इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था ।भगवान धनवंतरी ने दुखी जनों के रोग निवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था ।भगवान धनवंतरी ने दुखी जनों के रोग निवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था । सुबह उठकर स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान धन्वंतरि की पूजा कर स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करें । यदि धन्वंतरि का चित्र उपलब्ध न हो तो भगवान विष्णुजी की प्रतिमा में धन्वंतरि की भावना कर उनकी पूजा कर सकते हैं । इस दिन भगवान सूर्य को निरोगता की कामना कर लाल फूल डालकर अर्घ्य दें । भगवाण धन्वंतरी की साधना के लिये एक साधारण मंत्र है: Mantra on Dhanteras ॥ ॐ धन्वंतरये नमः ॥ इसके अलावा उनका एक और मंत्र भी है: ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः ॥ ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम: ॥ अर्थात: परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है । प्रचलि धन्वंतरी स्तोत्र इस प्रकार से है । ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः । सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम ॥ कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम । वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम ॥ धनतेरस से आरम्भ करें: सामग्री: दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप, अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र l विधि: साधक अपने सामने गुरुदेव व लक्ष्मीजी के फोटो रखें तथा उनके सामने लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती शंख रख दें l उस पर केसर से सतिया बना लें तथा कुमकुम से तिलक कर दें l बाद में स्फटिक की माला से निम्न मंत्र की ७ मालाएँ करें l तीन दिन तक ऐसा करने योग्य है l इतने से ही मंत्र-साधना सिद्ध हो जाती है l मंत्र जाप पूरा होने के पश्चात् लाल वस्त्र में शंख को बांधकर घर में रख दें l मंत्र : ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृहे स्थिरो ह्रीं ॐ नमः l कहते हैं- जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी l ***** धनतेरस के दिन दीपदान: इस दिन यम-दीपदान/yama deepadan जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके की जाती है। कुछ लोग नरक चतुर्दशी के दिन भी दीपदान करते हैं। स्कंदपुराण में लिखा है कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे । यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।। अर्थात कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है । पद्मपुराण में लिखा है कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।। कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए इससे दुरमृत्यु का नाश होता है। यम-दीपदान सरल विधि: यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें। गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें । उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें । प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें । Know More 108 Names of Lord Vishnu उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यमतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए निम्नोत्क मंत्र का उच्चारण करते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें । ‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें । यम दीपदान का मन्त्र/Yama Deepadan Mantra मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात्सुर्यज: प्रीयतामिति।। (पद्मपुराण) (त्रयोदशी के इस दीपदान के पाश और दण्डधारी मृत्यु तथा काल के अधिष्ठाता देव भगवान देव यम, देवी श्यामला सहित मुझ पर प्रसन्न हो।) पहले बताई विधि के अनुसार यमदीपदान करें: 1.निर्धनता दूर करने के लिए अपने पूजाघर मैं धनतेरस की शाम को अखंड दीपक जलाना चाहिए जो दीपावली की रात तक जरूर जलता रह. अगर दीपक भैयादूज तक अखंड जलता रहे तो घर के सारे वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं. 2.घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें साथ ही दीए में थोड़ी सी केसर भी डाल दें। 3.घर के तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा उसमें दो काली गुंजा डाल दें, गन्धादि से पूजन करके अपने घर के मुख्य द्वार पर अन्न की ढ़ेरी पर रख दें। साल भर आर्थिक अनुकूलता बनी रहेगी। स्मरण रहे वह दीप रातभर जलते रहना चाहिये, बुझना नहीं चाहिये । …. …. 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