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गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima / Vyasa Purnima)
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:“
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है.
गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.
गुरु पूर्णिमा : भारतीय त्योहार
वेद व्यास की जयंती : गुरु पूर्णिमा जगत गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है. माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था. वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी. वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था. उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है.
कब मानाया जाता है ?
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. ऐसे जगत गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है.
गुरु पूर्णिमा: गुरुपूर्णिमा का महत्व
गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा. गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती. जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है. पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है. इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए. यह पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा भी कहलाती है. गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है. गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है.
गुरु का दर्जा भगवान के बराबर माना जाता है क्योंकि गुरु, व्यक्ति और सर्वशक्तिमान के बीच एक कड़ी का काम करता है. संस्कृत के शब्द गु का अर्थ है अन्धकार, रु का अर्थ है उस अंधकार को मिटाने वाला.
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आत्मबल को जगाने का काम गुरु ही करता है. गुरु अपने आत्मबल द्वारा शिष्य में ऐसी प्रेरणाएं भरता है, जिससे कि वह अच्छे मार्ग पर चल सके. साधना मार्ग के अवरोधों एवं विघ्नों के निवारण में गुरु का असाधारण योगदान है. गुरु शिष्य को अंत: शक्ति से ही परिचित नहीं कराता, बल्कि उसे जागृत एवं विकसित करने के हर संभव उपाय भी बताता है. गुरुकृपा हि केवलं शिष्यस्य परम मंगलम | इस दिन केवल गुरु की ही नहीं किन्तु अपने घर में अपने से जो बड़ा है अर्थात पिता और माता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझ कर उनकी पूजा की जाती है ।
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इस दिन हम अपने गुरू और इष्टदेव, जिनको हम अपना भगवान मानते हैं इनका ध्यान भी मंत्र जाप विधि से कर सकते हैं। अगर व्यक्ति ने जाने-अनजाने किसी भी तरह की कोई गलती की है या गलती हो गयी है तो अपने गुरू से माफ़ी लेनी चाहिए ।
( व्यास पूर्णिमा के दिन इस श्लोक को पढ़ना चाहिए )
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः॥
వ్యాసాయ విష్ణురూపాయ వ్యాసరూపాయ విష్ణవే |
నమో వై బ్రహ్మనిధయే వాసిష్ఠాయ నమో నమః ||
Vyasaya Vishnu Roopaya, Vyasa Roopaya Vishnave |
Namove Bhrama Nithaye, Vasishtaya Namo Namaha:||
Meaning: Salutation to Vyas who is in the form of Vishnu and Vishnu who is in the form of Vyas and one who is the treasure house of the Vedas. Salutation to one who was born in the noble family of Vasishta. The honour of being equal to Vishnu belonged to Maharshi Vyas.
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