Share: Table of Contents ToggleRules to be followed in Shradhसर्वपितृ तृप्ति मंत्र/Sarvapitri Satisfaction Mantraश्राद्ध में क्या करें क्या ना करें/Do’s and Don’ts in Shradhसर्वपितृ अमावस्या/Sarvapitra AmavasyaRelated posts:13 Powerful Benefits of Kala Bhairava Ashtami54 Interesting Facts About CowImportance of Bilva dalam or Bel LeavesCow Ghee for NoseHoli ke 7 Vishesh UpahaarBrahmavriksha PalashaSomvati AmavasyaJaya Janardhana Krishna Radhika PatheMonday what to do and what not to doGeethamrutham Rules to be followed in Shradh श्राद्ध में पालने योग्य नियम श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरों की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं। हमारे जिन संबंधियों का देहावसान हो गया है, जिनको दूसरा शरीर नहीं मिला है वे पितृलोक में अथवा इधर-उधर विचरण करते हैं, उनके लिए पिण्डदान किया जाता है। 1.बच्चों एवं संन्यासियों के लिए पिण्डदान नहीं किया जाता। 2.विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे। परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए। 3.भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि ‘हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें।’ 4.श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है। (विष्णु पुराणः 3.16,16) Know More Donating these 10 items in Pitru Paksha/Shradh 5.श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण। ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए। 6.श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिएः शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नही करना)। 7.श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए। 8.जिनकी देहावसना-तिथि का पता नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए। सर्वपितृ तृप्ति मंत्र/Sarvapitri Satisfaction Mantra ॐ श्रीं ह्रीं कलीं स्वधा देव्यै स्वाहा । श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन तिलक करके इस मंत्र की केवल एक माला जप करने से सर्वपितृ प्रसन्न हो जाते हैं ।(पूज्य बापूजी) देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।। “समस्त देवताओं, पितरों, महायोगिनियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं। ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं।” श्राद्ध करने के आरम्भ और अंत में इस श्लोक का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटि क्षम्य हो जाती है, पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं | (वायु पुराणः 74.16) 1.वस्तुओं का उपयोग न करें मसूर, मटर, कमल, बिल्व, धतुरा, भेड़-बकरी का दूध इन वस्तुओं का उपयोग श्राद्ध में न करें। 2.वस्तुओं का उपयोग करें कुश, उड़द, साठी के चावल, जौ, गन्ना, सफेद फूल, मधु, गाय का दूध घी ये वस्तुयें पितरों को सदा प्रिय हैं अतः श्राद्ध में इनका उपयोग करें ।(पद्मपुराण) श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें/Do’s and Don’ts in Shradh श्राद्ध एकान्त मे ,गुप्तरुप से करना चाहिये, पिण्डदान पर दुष्ट मनुष्यों की दृष्टि पडने पर वह पितरों को नहीं पहुचँता, दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिये, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमदिर ये दूसरे की भूमि में नही आते, इन पर किसी का स्वामित्व नहीं होता, श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है, श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नहीं करते तथा शाप देकर लौट जाते हैं, ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है | (पद्मपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण ) श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुये पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि प्रदान करते हैं , श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ में पहुचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये, शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण श्राद्ध के लिये श्रेष्ठ माना जाता है | (पद्मपुराण, मनुस्मृति) सायंकाल में श्राद्ध नहीं करना चाहिये, सायंकाल का समय राक्षसी बेला नाम से प्रसिद्ध है, चतुर्दशी को श्राद्ध करने से कुप्रजा (निन्दित सन्तान) पैदा होती है, परन्तु जिसके पितर युद्ध में शस्त्र से मारे गये हो, वे चतुर्दशी को श्राद्ध करने से प्रसन्न होते हैं, जो चतुर्दशी को श्राद्ध करने वाला स्वयं भी युद्ध का भागी होता है | (स्कन्दपुराण, कूर्मपुराण, महाभारत) रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है, दोनो संध्याओं में तथा पूर्वाह्णकाल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये, दिन के आठवें भाग (महूर्त) में जब सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय का नाम ‘कुतप’ है, उसमें पितरों के लिये दिया हुआ दान अक्षय होता है, कुतप, खड्गपात्र, कम्बल, चाँदी , कुश, तिल, गौ और दौहित्र ये आठो कुतप नाम से प्रसिद्ध है, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र हैं, दौहित्र, कुतपकाल, तथा तिल, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त प्रशंसनीय हैं, बाहर और भीतर की शुद्धि, क्रोध न करना तथा जल्दबाजी न करना (मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण) सर्वपितृ अमावस्या/Sarvapitra Amavasya पितृ पक्ष का आखिरी दिन पितृ अमावस्या होती है। इस दिन कुल के सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। फिर चाहे उनकी मृत्यु तिथि पता न हो। तब भी आप पितृ अमावस्या पर उनका तर्पण कर सकते हैं। पितृ पक्ष की अमावस्या को सूर्यास्त से पहले ये उपाय करना है। इस उपाय में एक स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले व सफेद तिल और जौ मिला लें। इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ पीपल के पेड़ के नीचे जाकर सबसे पहले ये सारा सामान पेड़ की जड़ में चढ़ा दें। इस दौरान सर्व पितृ देवभ्यो नम: का जप करते रहें। ये मंत्र बोलते हुए पीपल को जनेऊ भी चढ़ाएं। इस पूरी विधि के बाद मन में सात बार“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करें और भगवान विष्णु से कहें मेरे जो भी अतृप्त पितृ हों वो तृप्त हो जाए। इस उपाय को करने से पितृ तृप्त होते हैं पितृ दोष का प्रभाव खत्म होता है और उनका अशीर्वाद मिलने लगता है। हर तरह की आर्थिक और मानसिक समस्याएं दूर होती हैं। …. …. 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