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Sarvangasana Yoga सर्वांगासन योग
Sarvangasana Yoga विधिः स्थिति क्रम। बिछे हुए आसन पर लेट जायें। श्वास लेकर भीतर रोकें व कमर से दोनों पैरों तक का भाग ऊपर उठायें। दोनों हाथों से कमर को आधार देते हुए पीठ का भाग भी ऊपर उठायें। अब सामान्य श्वास-प्रश्वास करें। हाथ की कोहनियाँ भूमि से लगी रहें व ठोढ़ी छाती के साथ चिपकी रहे।
गर्दन और कंधे के बल पूरा शरीर ऊपर की ओर सीधा खड़ा कर दें। दृष्टि पैर के दोनों अँगूठों पर हो। गहरा श्वास लें, फिर श्वास बाहर निकाल दें। श्वास बाहर रोककर गुदा व नाभि के स्थान को अंदर सिकोड़ लें व ʹૐ अर्यमायै नमः।ʹ मंत्र का मानसिक जप करें।
अब गुदा को पूर्व स्थिति में ले आयें। फिर से ऐसा करें, 3 से 5 बार ऐसा करने के बाद गहरा श्वास लें। श्वास भीतर भरते हुए ऐसा भाव करें कि ʹमेरी ऊर्जाशक्ति ऊर्ध्वगामी होकर सहस्रार चक्र की ओर प्रवाहित हो रही है। मेरे जीवन में संयम बढ़ रहा है।ʹ फिर श्वास बाहर छोड़ते हुए उपर्युक्त विधि को दोहरायें। ऐसा 5 बार कर सकते हैं।
समयः सामान्यतः एक से पाँच मिनट तक यह आसन करें। धीरे-धीरे 15 मिनट तक बढ़ा सकते हैं।
लाभः यह आसन मेधाशक्ति को बढ़ाने वाला व चिरयौवन की प्राप्ति कराने वाला है। विद्यार्थियों को तथा मानसिक, बौद्धिक कार्य करने वाले लोगों को यह आसन अवश्य करना चाहिए। इससे नेत्रों और मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। इस आसन को करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है व स्वप्नदोष जैसे रोगों का नाश होता है। सर्वांगासन के नित्य अभ्यास से जठराग्नि तीव्र होती है, त्वचा लटकती नहीं तथा झुर्रियाँ नहीं पड़तीं।
सावधानीः थायराइड के अति विकासवाले, उच्च रक्तचाप वाले, खूब कमजोर हृदयवाले और अत्यधिक चर्बी वाले लोग यह आसन न करें।